आयुष्मान खुराना, यूनिसेफ इंडिया के लिए सेलिब्रिटी समर्थक
यूथ आइकन और बॉलीवूड स्टार आयुष्मान खुराना एक विचारवान अग्रणी हैं जो उनके प्रगतिशील, चर्चा की शुरुआत करने वाली मनोरंजक फिल्मों के ज़रिए समाज में रचनात्मक, सकारात्मक बदलाव लाने का लक्ष्य रखते हैं। टाइम मैगेज़ीन द्वारा दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक के तौर पर चुने गए आयुष्मान खुराना को हाल ही में यूनिसेफ के वैश्विक अभियान ईवीएसी (बच्चों के खिलाफ हिंसा खत्म करना) के लिए उनके सेलिब्रिटी समर्थक के तौर पर नियुक्त किया गया है। बाल मजदूरी के खिलाफ विश्व दिवस पर युवा बॉलीवूड स्टार आयुष्मान खुराना इस बात को प्रमुखता से अधोरेखित करने की कोशिश कर रहे हैं कि किस प्रकार यह प्रथा बच्चों के अधिकारों का पूरी तरह उल्लंघन करती है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए।
आयुष्मान का कहना है, “बाल मजदूरी बच्चों से उनका बचपन छीन लेती है और यह उनके अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन है। कोविड-19 ने बच्चों को, विशेष रुप से बच्चियों और प्रवासी मजदूरों के बच्चों को बड़े खतरों के संपर्क में लाते हुए ज़्यादा असुरक्षित बना दिया है। स्कूलों का बंद होना, घर में बढ़ी हुई हिंसा, माता-पिता की मौत, परिवार के भीतर ही नौकरी जाने के कारण बच्चों को बाल मजदूरी की ओर धकेला जा रहा है।”
साल 2011 में हुई भारत की जनगणना के अनुसार 5 से 14 वर्ष के आयु-वर्ग में 10.1 मिलियन (1.01 करोड़) बच्चे हैं (5.6 मिलियन लड़के और 4.5 मिलियन लड़कियाँ) जो पैसे कमाने के लिए सक्रिय हैं। घरेलू कार्यों सहित अनौपचारिक असंगठित क्षेत्र में बच्चे बड़े पैमाने पर अदृष्य ही रहते हैं और इसलिए आधिकारिक आंकड़ों में उन्हें पूरी तरह कवर नहीं किया जाता। उन्हें रोज़गार दिया जाता है क्योंकि उन्हें काम पर रखना सस्ता होता है और काम पर ऱखने वाले की मांगों को वे आसानी से मान लेते हैं और उनके अधिकारों के बारे में उनमें जागरुकता नहीं होती।
कोविड-19 स्वास्थ्य महामारी और इसके कारण आर्थिक और श्रम बाज़ार में लगे झटकों का बहुत बड़ा असर लोगों के जीवनों और आजीविका पर पड़ रहा है। दुर्भाग्य से, इससे सबसे पहले पीड़ित होने वालों में बच्चे ही होते हैं। पहले जो एक स्वास्थ्य संकट के तौर पर शुरु हुआ, अब इसने एक संपूर्ण रुप से मानवीय/सामाजिक-आर्थिक संकट – और बच्चों के लिए इससे भी बड़े संकट का रुप ले लिया है।
स्कूलों के बंद होने से बच्चों पर असंगत रुप से प्रभाव पड़ा है, जो पहले से ही शिक्षा तक पहुँच प्राप्त करने में कई बाधाओं का अनुभव करते हैं, जिसमें शामिल है विकलांगता से पीड़ित बच्चे, दूर दराज़ के इलाकों में रहने वाले छात्र, प्रवासी मजदूरों के या ऐसे परिवारों के बच्चे जिनकी नौकरी चली जाने की वजह से आय का स्त्रोत बंद हो गया है। कई बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा या स्मार्ट फोन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस प्रकार, कई बच्चों के लिए इस संकट के कारण शिक्षा बंद हो गई है या बेहद सीमित स्तर पर मिल रही है, या वे उनके साथियों की तुलना में और भी ज़्यादा पिछड़ रहे हैं। ऐसे गरीब और सुविधावंचित घरों में रहनेवाले बच्चों के स्कूल छोड़ने और ज़बरन बाल मजदूरी, बाल विवाह में धकेले जाने या बाल तस्करी का शिकार होने का खतरा बढ़ गया है।
लॉकडाउन के कारण आर्थिक मंदी और कोविड के फैलाव को रोकने संबंधी किए गए अन्य बचावात्मक उपायों से बड़े पैमानों पर नौकरियाँ खत्म हो गई हैं। इससे, सबसे असुरक्षित बच्चों के जीवन में विपरीत परिणाम पड़ने की उम्मीद है। जैसे जैसे माता-पिता और देखभाल करने वाले बीमार हो रहे हैं या उनकी मौत हो रही है, बच्चों को ज़बरन घरेलू काम और पैसे कमाने की ज़िम्मेदारियों सहित उनकी भूमिका निभाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। देखभाल करने वाले बच्चे, विशेष रुप से उन बच्चियों के बीमारी से ग्रस्त होने का खतरा ज़्यादा बढ़ गया है जो बीमार परिजनों की देखभाल कर रही हैं और इसके साथ ही उनके स्कूल छोड़ देने और बिना पैसों के बाल मजदूरी में लिप्त होने की जोखिम भी बढ़ गई है।
बच्चों का शोषण रोकने के लिए आयुष्मान खुराना और यूनिसेफ एक साथ आगे आए हैं और लोगों से ऐसी समस्याओं के प्रति जागरुक रहने का आग्रह कर रहे हैं। उनका कहना है, “इस समस्या के होने से रोकने के लिए आपस में मिल कर काम करिए। गरीब परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का समर्थन करें; इस बात को प्रमुखता से अधोरेखित करें कि स्कूल जब वापिस शुरु हों तो बच्चों को सुरक्षित रुप से स्कूलों में जाना है; यदि आप किसी भी बच्चे को देखें जो परेशानी में है और जिसे सहायता की ज़रुरत है, तो चाइल्डलाइन नंबर 1098 पर संपर्क करें। ”


